(124) और जो मेरे 'ज़िक्र' (नसीहत के सबक़) से मुँह मोड़ेगा उसके लिए दुनिया में ज़िन्दगी तंग105 होगी और क़ियामत के दिन हम उसे अंधा उठाएँगे"106
105. दुनिया में तंग ज़िन्दगी होने का मतलब यह नहीं है कि वह तंगदस्त हो जाएगा, बल्कि इसका मतलब यह है कि वहाँ उसे चैन नसीब न होगा। करोड़पति भी होगा तो बेचैन रहेगा। सात देशों का हाकिम भी होगा तो बेकली और बेइत्मीनानी से छुटकारा न पाएगा, उसकी दुनियावी कामयाबियाँ हज़ारों तरह की नाजाइज़ तदबीरों का नतीजा होंगी, जिनकी वजह से अपने ज़मीर (अन्तरात्मा) से लेकर आसपास के पूरे इज्तिमाई माहौल तक हर चीज़ के साथ उसकी लगातार कशमकश जारी रहेगी जो उसे कभी अम्नो-इत्मीनान और सच्ची ख़ुशी से फ़ायदा न उठाने देगी।
106. इस जगह आदम (अलैहि०) का क़िस्सा खत्म हो जाता है। यह क़िस्सा जिस तरीक़े से यहाँ और क़ुरआन की दूसरी जगहों पर बयान हुआ है, उसपर ग़ौर करने से मैं यह समझा हैं (सही बात तो अल्लाह ही जानता है) कि ज़मीन की अस्ल ख़िलाफ़त (शासनाधिकार) वही थी जो आदम (अलैहि०) को शुरू में जन्नत में दी गई थी। यह जन्नत हो सकता है कि आसमानों में हो और हो सकता है कि इसी ज़मीन पर बनाई गई हो। बहरहाल, वहाँ अल्लाह तआला का ख़लीफ़ा इस शान से रखा गया था कि उसके खाने पीने और लिबास और मकान का सारा इन्तिज़ाम सरकार के ज़िम्मे था और ख़िदमत करनेवाले (फ़रिश्ते) उसके हुक्म के ग़ुलाम थे, उसको अपनी निजी ज़रूरतों के लिए बिलकुल भी कोई फ़िक्र न करनी पड़ती थी, ताकि वह ख़िलाफ़त की बहुत बड़ी और बहुत अहम ज़िम्मेदारियाँ अदा करने के लिए तैयार हो सके। मगर इस मंसब पर बाक़ायदा तक़र्रुर होने से पहले इम्तिहान लेना ज़रूरी समझा गया, ताकि उम्मीदवार की सलाहियतों का हाल खुल जाए और यह ज़ाहिर हो जाए कि उसकी कमज़ोरियाँ क्या हैं और ख़ूबियाँ क्या। चुनाँचे इम्तिहान लिया गया और जो बात खुली वह यह थी कि यह उम्मीदवार लालच और लोभ के असर में आकर फिसल जाता है, फ़रमाँबरदारी के इरादे पर मज़बूती से क़ायम नहीं रहता, और उसके इल्म पर भूल हावी हो जाती है। इस इम्तिहान के बाद आदम (अलैहि०) और उनकी औलाद को मुस्तक़िल तौर पर ख़िलाफ़त पर मुक़र्रर करने के बजाय आज़माइशी ख़िलाफ़त दी गई, और आज़माइश के लिए एक मुद्दत (अ-जले मुसम्मा जिसका ख़ातिमा क़ियामत पर होगा) मुक़र्रर कर दी गई। इस आज़माइश के दौर में उम्मीदवारों के लिए रोज़ी-रोटी का सरकारी इन्तिज़ाम ख़त्म कर दिया गया। अब अपनी रोज़ी का इन्तिज़ाम उन्हें ख़ुद करना है। अलबत्ता ज़मीन और उसपर मौजूद अल्लाह की बनाई हुई चीज़ों पर उनके इख़्तियारात बरक़रार है। आज़माइश इस बात की है कि इख़्तियार रखने के बावजूद ये फ़रमाँबरदारी करते हैं या नहीं, और अगर भूल हो जाती है, या लालच के असर में आकर फिसलते हैं तो चेतावनी, नसीहत और तालीम का असर क़ुबूल करके संभलते भी हैं या नहीं। और उनका आख़िरी फ़ैसला क्या होता है, फ़रमाँबरदारी का या नाफ़रमानी का? इस आज़माइशी ख़िलाफ़त के दौरान में हर एक के रवैये का रिकॉर्ड महफ़ूज़ रहेगा और हिसाब के दिन जो लोग कामयाब निकलेंगे, उन्हीं को फिर मुस्तक़िल तौर पर ख़िलाफ़त दी जाएगी और यह ख़िलाफ़त, उस हमेशा की ज़िन्दगी और कभी न ख़त्म होनेवाली सल्तनत के साथ दी जाएगी जिसका लालच देकर शैतान ने अल्लाह के हुक्म की ख़िलाफ़वर्ज़ी कराई थी। उस वक़्त यह पूरी ज़मीन जन्नत बना दी जाएगी और इसके वारिस अल्लाह के वे नेक बन्दे होंगे जिन्होंने आज़माइशी ख़िलाफ़त में फ़रमाँबरदारी पर क़ायम रहकर, या भूल हो जाने के बाद आख़िरकार फ़रमाँबरदारी की तरफ़ पलटकर, अपना लायक़ होना साबित कर दिया होगा। जन्नत की उस ज़िन्दगी को जो लोग सिर्फ़ खाने-पीने और ऐंडने को ज़िन्दगी समझते हैं उनका ख़याल सही नहीं है। वहाँ लगातार तरक़्क़ी होगी, बिना इसके कि उसके लिए किसी तरह की गिरावट का ख़तरा हो। और वहाँ अल्लाह की ख़िलाफ़त के अज़ीमुश्शान काम इनसान अंजाम देगा, बिना इसके कि उसे फिर किसी नाकामी का मुँह देखना पड़े। मगर इन तरक़्क़ियों और उन ख़िदमतों का तसव्वुर करना हमारे लिए उतना ही मुश्किल है जितना एक बच्चे के लिए यह तसव्वुर करना मुश्किल होता है कि बड़ा होकर जब वह शादी करेगा तो शादीशुदा ज़िन्दगी की कैफ़ियतें क्या होंगी। इसी लिए क़ुरआन में जन्नत की ज़िन्दगी की सिर्फ़ उन्हीं लज़्ज़तों का ज़िक्र किया गया जिनका हम इस दुनिया की लज़्ज़तों पर गुमान करके कुछ अन्दाज़ा कर सकते हैं।
इस मौक़े पर यह बात दिलचस्यी से ख़ाली न होगी कि आदम (अलैहि०) और हव्वा (अलैहि०) का क़िस्सा जिस तरह बाइबल में बयान हुआ है उसे भी एक नज़र देख लिया जाए। बाइबल का बयान है कि “ख़ुदा ने ज़मीन की मिट्टी से इनसान को बनाया और उसके नथुनों में ज़िन्दगी का दम फूँका तो इनसान जीती जान हुआ और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने पूरब की तरफ़ अदन में एक बाग़ लगाया और इनसान को जिसे उसने बनाया था, वहाँ रखा।” “और बाग़ के बीच में एक ज़िन्दगी का पेड़ और अच्छे और बुरे की पहचान का पेड़ भी लगाया।” “और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने आदम को हुक्म दिया और कहा कि तू बाग़ के हर पेड़ का फल बेरोक-टोक खा सकता है, लेकिन अच्छे और बुरे की पहचान के पेड़ का फल कभी न खाना; क्योंकि जिस दिन तुने उसमें से खाया तो मरा।” “और ख़ुदावन्द ख़ुदा उस पसली से जो उसने आदम में से निकाली थी, एक औरत बनाकर उसे आदम के पास लाया।” “और आदम और उसकी बीवी दोनों नंगे थे और शरमाते न थे।” “और साँप तमाम जंगली जानवरों से जिनको ख़ुदावन्द ख़ुदा ने बनाया था, चालाक था, और उसने औरत से कहा कि क्या वाक़ई ख़ुदा ने कहा है कि बाग़ के किसी पेड़ का फल तुम न खाना?” “साँप ने औरत से कहा कि तुम हरगिज़ न मरोगे, बल्कि ख़ुदा जानता है जिस दिन तुम उसे खाओगे, तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी और तुम ख़ुदा की तरह अच्छे और बुरे के जाननेवाले बन जाओगे।” चुनाँचे औरत ने उसका फल लेकर खाया और अपने शौहर को भी खिलाया। “तब दोनों की आँखें खुल गईं और उनको मालूम हुआ कि वे नंगे हैं और उन्होंने अंजीर के पत्तों को सीकर अपने लिए लुंगियाँ बनाई। और उन्होंने ख़ुदावन्द ख़ुदा की आवाज़ जो ठंडे वक़्त बाग़ में फिरता था, सुनी और आदम और उसकी बीवी ने अपने आपको ख़ुदावन्द ख़ुदा के सामने बाग़ के पेड़ों में छिपाया।” “फिर ख़ुदा ने आदम को पुकारा तू कहाँ है। उसने कहा कि मैं तेरी आवाज़ सुनकर डरा और छिप गया, क्योंकि मैं नंगा था। ख़ुदा ने कहा कि अरे, तुझको यह कैसे मालूम हो गया कि तू नंगा है ज़रूर तूने उस पेड़ का फल खाया होगा जिससे मैने मना किया था। आदम ने कहा कि मुझे हव्वा ने इसका फल खिलाया, और हव्वा ने कहा कि मुझे साँप ने बहकाया था। इसपर ख़ुदा ने साँप से कहा, “इसलिए कि तूने यह किया, तू सब चौपायों और जंगली जानवरों में घिक्कारा हुआ ठहरा। तू अपने पेट के बल चलेगा और उम्र भर धूल चाटेगा और में तेरे और औरत के बीच और तेरी नस्ल और औरत की नस्ल के बीच दुश्मनी डालूँगा वह तेरे सर को कुचलेगा और तू उसकी एड़ी पर काटेगा।” और औरत को यह सज़ा दी कि “मैं तेरे हमल के दर्द (प्रसव-पीड़ा) को बहुत बढ़ाऊँगा। तू दर्द के साथ बच्चा जनेगी और तेरी दिलचस्पी अपने शौहर की तरफ़ होगी और वह तुझपर हुकूमत करेगा और आदम के बारे में वह फ़ैसला सुनाया कि चूँकि तूने अपनी बीवी की बात मानी और मेरे हुक्म के ख़िलाफ़ किया, “इसलिए ज़मीन तेरी वजह से लानती हुई, मेहनत और तकलीफ़ के साथ तू अपनी उम्र भर उसकी पैदावार खाएगा....तू अपने मुँह के पसीने की रोटी खाएगा।” फिर “ख़ुदावन्द ने आदम और उसकी बीवी के लिए चमड़े के कुर्ते बनाकर उनको पहनाए।” “और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने कहा : देखो, इनसान अच्छे और बुरे की पहचान में हममें से एक की तरह हो गया। अब कहीं ऐसा न हो कि वह अपना हाथ बढ़ाए और ज़िन्दगी के पेड़ से भी कुछ लेकर खाए और हमेशा जीता रहे। इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा ने उसको अदन के बाग़ से बाहर कर दिया।" (उत्पत्ति, अध्याय-2, आयतें—7-25, अध्याय-3, आयतें—1-23)
बाइबल के इस बयान और क़ुरआन के बयान को ज़रा वे लोग एक-दूसरे के सामने रखकर देखें जो यह कहते हुए नहीं शरमाते कि क़ुरआन में ये क़िस्से बनी-इसराईल से नक़्ल कर लिए गए हैं।